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अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ

प्रकाश माहेश्वरी

प्रकाशक : आर्य बुक डिपो प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :118
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6296
आईएसबीएन :81-7063-328-1

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‘अंत का आरंभ तथा अन्य कहानियाँ’ समाज के इर्द-गिर्द घूमती कहानियों का संग्रह है।

गुरु-दक्षिणा


ग्यारह बज चुके थे। प्रधानाध्यापक तिवारीजी रोज़ की तरह शाला लगने के बाद राउंड पर निकले थे। अभी कक्षा 1० 'ब' के सामने से निकल रहे थे कि खिड़की के करीब बैठे एक छात्र पर उनकी नज़र पड़ी।

छात्र शाला-गणवेश के 'सफ़ेद शर्ट' की जगह 'फैशनेबुल सफ़ेद टी-शर्ट' पहने हुए था। टी-शर्ट का कालर, बाँह व जेब पर हल्की कशीदाकारी की हुई थी।

देखते ही तिवारीजी का पारा चढ़ गया। शाला के लिए उन्होंने गणवेश निर्धारित कर रखा था-'खाकी पैंट, सफ़ेद शर्ट।' पैंट-शर्ट भी सादे-सरल ढंग से सिली हुई, बिना किसी डिजाइन-फैशन के।

इसके पीछे उनका तार्किक बाल-मनोविज्ञान था। उनकी सरकारी शाला में अमीर-गरीब सभी के बच्चे पढ़ते थे। अमीर परिवारों के बच्चे नित्य नए फ़ैशन-डिजाइन के कीमती परिधान पहनकर आ सकते थे, मगर गरीब परिवारों के बच्चे...?

तिवारीजी नहीं चाहते थे गरीब छात्रों के मन में अमीर सहपाठियों को नित नवीन फ़ैशनेबुल कपड़े पहनते देख किसी तरह की हीन भावना पनपे और वे पढ़ाई की ओर ध्यान देने की बजाय अपने अभावों के बारे में व्यर्थ सोच-विचार कर अपनी पढ़ाई का नुकसान करें।

वे अपने छात्रों में 'बुद्धि की प्रतिस्पर्धा' चाहते थे, 'पिता की अमीरी' की नहीं। इसलिए उन्होंने सभी छात्रों के लिए गणवेश अनिवार्य कर रखा था और सख्त हिदायत भी दे रखी थी कि पैंट-शर्ट निहायत सादे ढंग से सिली हुई हो, फिल्मी स्टाईल व फैशन से सर्वथा दूर।

मगर इतना समझाने के बावजूद यह छात्र आज 'टी-शर्ट' पहनकर चला आया?...देखा-देखी दूसरे भी पहनेंगे।

क्रोध से तमतमाते हुए वे कक्षा में दाखिल हुए।

उन्हें यकायक आया देख समस्त छात्र एवं पड़ा रहे शिक्षक हतप्रभ रह गए। किसी को कुछ समझ नहीं आया-प्रधानाध्यापकजी इतने गुस्से में क्यों हैं?

लंबे-लंबे डग भरते हुए तिवारीजी उस छात्र की बेंच के पास जाकर खड़े हो गए।

हर बेंच पर दो छात्र बैठते थे। उस बेंच पर बैठे दोनों छात्रों को यह देखते ही साँप सूँघ गया। दोनों बुरी तरह सकपका गए।

तिवारीजी खिड़की की तरफ़ बैठे छात्र की ओर लाल-लाल आँखों से मुखातिब हुए, ''खड़े हो?''

''...ज...जी!''

''खड़े हो जाओ।'' तिवारीजी ने सख्त लहजे में आदेश दिया।

वह छात्र भय से थरथराता हुआ खड़ा होने लगा।

पूरी कक्षा के सम्मुख स्पष्ट हो गया था कि बदमाशी यही छात्र कर रहा था।

मगर कौन-सी?...सहमे हुए से वे सब उत्सुकतापूर्वक उसे देखने लगे।

वह छात्र पशोपेश में पड़ा चुपचाप खड़ा हो गया। बचाव के लिए उसने नोट्स की कापी हाथ में ले ली थी। सर पूछेंगे तो बतला देगा एक-एक शब्द नोट किया है उसने।

मगर नोट्स बतलाने की ज़रूरत नहीं पड़ी। तिवारीजी ने गुस्से से पूछा, ''क्या नाम है?''

''...ज जी ई...बन...बन...बनवारी...बनवारीलाल वर्मा।''

''यहाँ पढ़ने आते हो या फ़ैशन करने?'' कहते हुए उन्होंने उसकी एंब्रायडरी वाली कालर पकड़ अपनी ओर खींची।

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    अनुक्रम

  1. पापा, आओ !
  2. आव नहीं? आदर नहीं...
  3. गुरु-दक्षिणा
  4. लतखोरीलाल की गफलत
  5. कर्मयोगी
  6. कालिख
  7. मैं पात-पात...
  8. मेरी परमानेंट नायिका
  9. प्रतिहिंसा
  10. अनोखा अंदाज़
  11. अंत का आरंभ
  12. लतखोरीलाल की उधारी

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